जून का महीना था, समय दोपहर के लगभग ढाई बजे. विवेक अपने मित्र सुदर्शन के साथ राजस्थान के राज्यमार्ग पर कार में सफर कर रहे थे.
‘‘दर्शी, आज गरमी कुछ ज्यादा है, कार का एयरकंडीशनर भी काम नहीं कर रहा है.’’ विवेक ने सुदर्शन से कहा, जो कार की स्टीयरिंग पर एकाग्रता से बैठा था.
दोस्त का नाम तो सुदर्शन था, पर सब मित्र और परिवार के लोग उसे दर्शी ही कहते थे. उस की उम्र भले ही 40 साल हो गई थी, लेकिन बचपन से अब तक प्यार का नाम दर्शी ही प्रचलन में था. यही हाल विवेक का भी था, उसे सब विक्की कहते थे.
‘‘विक्की, एक तो जून का महीना है, ऊपर से दोपहर का समय. गरमी के इस प्रकोप में वह भी राजस्थान में कार का एयरकंडीशनर क्या काम करेगा.’’
‘‘दर्शी, थोड़ी देर रुक कर आराम कर लिया जाए.’’
‘‘यार, दूर तक सिर्फ रेत के टीले ही नजर आ रहे हैं. रुकने लायक कोई जगह नजर आए तभी तो रुक कर आराम करेंगे.’’ दर्शी ने दूर तक नजर दौड़ाते हुए जवाब दिया.
‘‘दर्शी, आज तक हम राजस्थान की अंदरूनी जगहों पर नहीं गए. जयपुर, अजमेर और उदयपुर तक ही सीमित रहे. आज हमें राजस्थान की एकदम अंदरूनी जगह के लिए एक चुनौती मिली है, जहां हमें अपना हुनर दिखाना है.’’
‘‘विक्की, हम ने उस सेठ की बातों में आ कर चुनौती स्वीकार तो कर ली है, लेकिन क्या हमारी मेहनत का पैसा मिलेगा?’’
‘‘दिल छोटा मत कर यार. इन सेठों के पास पैसों की कोई कमी नहीं है.’’
‘‘यार, आधा घंटा हो गया, रेतीला रेगिस्तान समाप्त ही नहीं हो रहा है. जून के महीने की दोपहर में अगर कार के एसी ने बिलकुल जवाब दे दिया, तब क्या हालत होगी?’’