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पहले अटल विश्वास न कर सका, किंतु जब स्वयं मानसिंह ने उस से विवाह की बात कही, तब तो अटल की खुशी का ठिकाना न रहा. दूसरे ही दिन विवाह होना था. अटल इंतजाम में लग गया. लोग उस से पूछते कि वह पैसा कहां से लाएगा और इतना बड़ा ब्याह कैसे करेगा?

अटल गर्व से जवाब देता, ‘‘मैं कन्या दूंगा और एक गाय दूंगा. सूखी हल्दी और चावल का टीका लगाऊंगा. घर में बहुत से जानवरों के चमड़े रखे हैं, उन्हें बेच कर बहन के गले के लिए चांदी की एक हंसली दूंगा और क्या चाहिए?’’

मानसिंह ने अटल की कठिनाइयां सुनीं तो उसे संदेश भेजा कि वे ग्वालियर से शादी करने को तैयार हैं और दोनों तरफ का खर्चा भी वे पूरा करेंगे. इस से अटल के स्वाभिमान को बड़ा धक्का पहुंचा. उस ने तुरंत संदेशा भेजा कि उसे यह बात मंजूर नहीं. आज तक कहीं ऐसा नहीं हुआ कि लडक़ी को लडक़े के घर ले जा कर विवाह किया गया हो, गरीब से गरीब लडक़ी वाले भी अपने घर में ही लडक़ी का कन्यादान देते हैं.

इस पर मानसिंह चुप हो गए. अटल ने रात भर जाग कर सब तैयारियां की. उस ने जंगल से लकड़ी और आम के पत्ते ला कर मंडप बनाया. अनाज बेच कर कपड़े का एक जोड़ा निन्नी के लिए तैयार किया तथा गांव वालों को बांटने के लिए गुड़ लिया.

इस तरह दूसरे दिन वैदिक रीति से राजा मान सिंह और निन्नी का ब्याह पूरा हुआ. गांव के लोगों से जो कुछ बन पड़ा, उन्होंने निन्नी को दिया. विदाई के समय निन्नी अटल से लिपट कर खूब रोई. उस ने रोते हुए कहा, ‘‘भैया, अब लाखी को भाभी बना कर जल्दी घर ले आओ. तुम्हें बहुत तकलीफ होगी.’’

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