मैं आगे बढ़ता रहा. थकान भूखप्यास से बुरा हाल था पर खुदा मुझ पर मेहरबान था. आगे मुझे कुछ मकान दिखने लगे. मेरा घोड़ा भी लस्तपस्त हो गया था. मैं थोड़ा आगे बढ़ा तो एक होटल नजर आया. खाने की खुशबू बाहर तक आ रही थी. पर मेरे पास पैसे नहीं थे, मैं वहीं थक कर बैठ गया. होटल के काउंटर पर बैठा शख्स मुझे गौर से देख रहा था.
कुछ देर बाद वह उठ कर बाहर आया और मुझे ध्यान से देखते हुए बोला, ‘‘यहां पहली बार दिख रहे हो, परदेसी हो क्या?’’
मैं ने बेबसी से कहा, ‘‘हां परदेसी हूं. भूखा हूं, पर जेब में पैसे नहीं हैं.’’
‘‘तुम कुछ पढ़ेलिखे हो? अंगरेजी बोल सकते हो, कुछ हिसाबकिताब कर सकते हो? दरअसल, मेरे यहां जो आदमी काम करता था, वह बाहर चला गया है, तुम मुझे जरूरतमंद और काबिले भरोसा लग रहे हो.’’
मैं ने झट से जवाब दिया, ‘‘मैं अंगे्रजी बोल सकता हूं, हिसाबकिताब भी कर सकता हूं. आप मुझ पर भरोसा कर सकते हैं.’’
होटल के मालिक आदम शेख ने मुझे होटल में रख लिया. होटल के पीछे ही मुझे रिहाइश भी मिल गई. मैं पूरी ईमानदारी से काम करने लगा. ऐतिहासिक शहर होने की वजह से वहां अंगरेज टूरिस्ट आते थे. इसलिए मेरी अहमियत और बढ़ गई. यहां मेरी अंगरेजी की काबिलियत काम आई.
मुझे जो जहर ऐना ने दिया था जब वह जिस्म से निकला तो मेरी बुराइयां भी निकल गईं. शायद मैं पूरी तरह बदल गया. देखने में मैं वैसे भी काफी स्मार्ट था. अब रहनसहन, आदतें बदलने से मेरी निखरी हुई शख्सियत से आदम शेख बहुत प्रभावित हुआ. मेरे काम ने उस का दिल जीत लिया था.