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उस के घर पर सेहन में 3 आदमी बैठे थे, जिन में एक जवान और 2 ज्यादा उम्र के थे. जवान लडक़ा देखने में जाहिद का भाई लगता था. दूसरे आदमियों के बारे में बताया कि वे उस के रिश्तेदार हैं, जो पास के गांव में रहते हैं. मुझे याद आया कि मुनव्वरी के बाप ने बताया था कि जाहिद की रिश्तेदारी पड़ोस के गांव में ऐसे लोगों से थी, जिन के यहां दुश्मनी में हत्या, मारकुटाई आम बात है.

मैं ने दोनों के नाम पूछे. दोनों चचाजाद भाई थे. दोनों के पिता के नाम पूछे तो पता चला कि उन में से एक के पिता को दफा 307 में 5 साल की जेल हुई थी. मैं ने उस से पूछा कि वह अपने पिता से जेल में मिलने जाता है या नहीं तो उस ने कहा कि मैं और घर वाले उन से मिलने जेल जाते रहते हैं. मैं जाहिद को कमरे में ले गया तो देखा वे दोनों जा रहे थे. मैं ने उन्हें आवाज दे कर कहा, “अभी जाओ नहीं, यहीं बैठो.”

जाहिद से मैं ने पूछा, “गहने कौन से ट्रंक में रखे थे.”

उस ने ट्रंक खोल कर दिखाया, “बस यही ट्रंक है. मैं ने आप से सच बताया था कि वह सब गहने ले गई है.”

मैं गहनों के बारे में ज्यादा गंभीर नहीं था. उस ने 2-3 बार कहा, “यही ट्रंक है. आप सब खोल कर देख लें. किसी में भी गहने नहीं मिलेंगे.”

मैं दूसरे कमरे में गया, उस में 2 पलंग थे, मैं कोई और सुराग तलाश रहा था. तभी मुझे एक पलंग के नीचे एक और ट्रंक दिखाई दिया. मैं ने जाहिद से कहा, “तुम तो कह रहे थे कि बस यही ट्रंक है तो यह ट्रंक किस का है?”

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