अकबर ने बीटेक (कंप्यूटर साइंस) करने के बाद सोचा था कि उसे जल्दी ही कोई न कोई प्राइवेट जौब मिल जाएगी और उस के परिवार की स्थिति सुधर जाएगी. मगर ऐसा कुछ नहीं हुआ. 10 महीने तक कई औफिसों में इंटरव्यू देने के बाद भी उसे नौकरी नहीं मिली. ऊपर से घर की जमापूंजी भी खर्च हो गई.
अकबर के परिवार में उस की मां के अलावा 2 छोटे भाई जावेद और नवेद थे, जिन की उम्र 16 और 12 बरस थी. वे भी सरकारी स्कूल में पढ़ रहे थे. घर का खर्च चलाने के लिए अब मां को अपने जेवर बेचने पड़ रहे थे. ऐसी स्थिति में अकबर समझ गया कि अब उसे कुछ न कुछ जल्दी ही करना पड़ेगा, वरना परिवार के भूखों मरने की नौबत आ जाएगी.
अकबर अपने ही विचारों में डूबा सड़कें नाप रहा था, तभी किसी ने उस का नाम ले कर पुकारा. उस ने पीछे मुड़ कर देखा तो चौंक पड़ा, ‘‘अरे इकबाल, तुम!’’ दोनों गर्मजोशी से गले मिले.
इकबाल हाईस्कूल में उस का मित्र बना था और 12वीं कक्षा तक साथ था. उसे पढ़नेलिखने में कोई खास दिलचस्पी नहीं थी. मगर अकबर को अपने पिता के कारण बीटेक में दाखिला लेना पड़ा. मगर जब अकबर बीटेक के तीसरे साल में था, तभी उस के पिता की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गई.
अकबर के पिता एक प्राइवेट औफिस में एकाउंटेंट थे. उन के मरने के बाद जो पैसा मिला, वह अकबर की पढ़ाई में लग गया था.
12वीं कक्षा पास करने के बाद इकबाल कहां चला गया, उसे इस बारे में कोई जानकारी नहीं हो पाई. और आज 5 साल बाद इकबाल उस के सामने था.