राजनीति और सैक्स तो चोलीदामन के साथ जैसा है. सत्ता की ताकत और बेहिसाब पैसे से कौन प्रभावित नहीं होता. कितनी लड़कियां कभी नौकरी के लिए उस के पास आईं. वह कइयों के साथ संबंध भी बनाता गया.
इस तरह सूरजभान एक सरपंच के बेटे से ले कर देश की संसद में मंत्री बना था. इतना लंबा सफर तय करने में कितने लोग मारे गए, कितनी बेईमानियां, कितने घोटाले, कितने दंगेफसाद, कितने झूठ, कितने पाप करने पड़े, खुद उसे भी याद नहीं.
आज सूरजभान 70 साल का बूढ़ा हो चुका था. उसे याद रहा, तो सिर्फ इतना कि एक रूपमती थी. एक अवध था. वह अपनी पत्नी अनुपमा को एक बार मुख्यमंत्री के बिस्तर पर भी भेज चुका था. उस के बाद उस की अनुपमा से आंख मिलाने की हिम्मत नहीं हुई. उस ने अनुपमा के लिए बंगला ले, गाड़ी, नौकरचाकर, तगड़े बैंक बेलैंस का इंतजाम कर दिया था और अनुपमा को समझा दिया था कि बहुतकुछ पाने के लिए कुछ तो खोना ही पड़ता है. राजनीति का ताज पहनने के लिए उस ने अपनी पत्नी को सीढ़ी की तरह इस्तेमाल किया था. उस का बेटा विदेश में बस चुका था.
सूरजभान को यह भी याद था कि विधानपरिषद में मंत्री चुने जाने के बाद दूसरी बार जब वह मंत्री चुना गया था, तब वह अनुपमा के पास गया था. तब उस ने वहां दारा को देखा था. दारा ने उस के पैर छुए थे उस ने अनुपमा से पूछा था कि दारा यहां कैसे? तो उस ने तीखे लहजे में जवाब दिया था, ‘‘मेरे कहने पर ही इस ने अवध की हत्या की थी, तो मेरा फर्ज बनता है कि मैं इसे पनाह दूं. तुम्हारे पास तो न मेरे लिए पहले समय था, न अब. मुझे भी तो कोई विश्वासपात्र चाहिए. तुम तो छत पर चढ़ने के लिए सब को सीढ़ी बना लेते हो और ऊपर पहुंचने के बाद सीढ़ी को लात मार देते हो. कल उतरने की बारी आएगी, तो बिना सीढ़ी के कैसे उतरोगे?’’ अनुपमा बहुतकुछ कह चुकी थी.