लगातार कई महीने तक खत आने से लिफाफे पर लिखा रहने वाला साफसुथरा पता मेरी आंखों में बस गया था. मैं मन ही मन सोचता था कि खत लिखने वाला भी अफरोज की तरह ही सुंदर होगा. फिर एक दिन अचानक एक अजीब घटना घटी.
उस दिन सुबह से ही बादल छाए थे. मैं डाक ले कर निकला तो फुहारें पड़ रही थीं. लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं लग रहा था कि तेज बारिश होने लगेगी. मैं जल्दी से घर वापस लौटने का इरादा कर के उस्मानाबाद पहुंच गया. तब तक तेज बरसात होने लगी थी. पूरी तरह भीग जाने के बावजूद मैं सीधा उस के दरवाजे पर जा कर रुका.
डाक में उस दिन भी उस के नाम का लिफाफा था. मैं ने सोचा, मुझे भीगता देख कर वह अंदर आने के लिए कहेगी और अगर मौका मिला तो मैं उस के सामने अपना हालेदिल बयां कर दूंगा. मैं उस से कहूंगा कि मेरे जैसा प्यार करने वाला उसे कहीं नहीं मिलेगा. लेकिन जैसे ही मेरी साइकिल की घंटी बजने पर दरवाजे की चिक उठी, मेरे सारे अरमानों पर ओस पड़ गई.
चिक हटाने वाला एक बूढ़ा आदमी था. वह अफरोज का पिता भी हो सकता था, इसलिए मैं गुलाबी रंग का लिफाफा हाथ में दबाए सोच रहा था कि वह उसे दूं या न दूं. तभी उस के पिता के कंधों के ऊपर मुझे उस की काली आंखें दिखाई दीं, जिन्हें देख कर ऐसा लगा जैसे वह लिफाफा न देने की विनती कर रही हो. एक क्षण के लिए मेरी समझ में नहीं आया कि मैं क्या करूं, लेकिन मैं तुरंत ही संभल कर बोला, ‘‘चचा मियां, बारिश का बड़ा जोर है. क्या आप..?’’