कहानी के बाकी भाग पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

फोन की घंटी बजी, मैं ने लपक कर फोन उठाया. दूसरी ओर मेरा एक सबइंसपेक्टर था, जिसे मैं ने शारिक के बारे में पता करने के लिए उस के दोस्तों के यहां और औफिस भेजा था. उस ने बताया, “दोस्तों से तो कुछ पता नहीं चला, लेकिन औफिस वालों से पता चला है कि 2 बजे शारिक के लिए किसी का फोन आया था. इस के बाद वह हड़बड़ा कर औफिस से निकल गया था. तब से वह किसी को दिखाई नहीं दिया.”

मोहल्ले वालों से पता चला था कि 8 दिन पहले नजमा के भाइयों ने किसी लडक़े की घर के पास जम कर पिटाई की थी. वजह मालूम नहीं हो सकी, पर वह लडक़ा शारिक नहीं था.

फोन एक बार फिर बजा. मैं ने रिसीवर उठा कर कान से लगाया तो दूसरी ओर से किसी लडक़ी की घबराई हुई आवाज आई, “अकबर भाई बोल रहे हैं न?”

मैं ने कहा, “हां.”

लडक़ी घबराहट में आवाज नहीं पहचान पाई और जल्दीजल्दी कहने लगी, “अकबर भाई, एक आदमी मुझे पकड़ कर यहां ले आया है. मुझे एक कमरे में बंद कर के खुद न जाने कहां चला गया है? यह फोन दूसरे कमरे में था, खिडक़ी का शीशा तोड़ कर किसी तरह मेरा हाथ वहां पहुंचा है. सारे दरवाजे बंद हैं. प्लीज, मेरे अब्बा तक खबर पहुंचा दें.”

इतना कह कर वह रोने लगी. मैं ने कहा, “मैं अकबर का दोस्त बोल रहा हूं. वह अभी घर पर नहीं है. आप यह बताएं कि आप बोल कहां से रही हैं?”

“यह मुझे नहीं मालूम. मुझे बेहोश कर के यहां लाया गया है. मुझे पता नहीं है.”

“तुम उसे पहचानती हो, जो तुम्हें वहां ले आया है?”

“नहीं, पर वह लंबातगड़ा आदमी है. पतलूनकमीज पहने है, हाथ में कड़ा भी है. वह मेरे कमरे की खिडक़ी से अंदर आया था. उस ने मेरे मुंह पर कोई चीज रखी और मैं बेहोश हो गई. प्लीज, कुछ कीजिए. शारिक या उस के अब्बा से बात करवा दीजिए.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, हम सब आप की तलाश में लगे हैं. लेकिन जब तक आप पता या जगह नहीं बताएंगी, हम कुछ नहीं कर सकते. खिडक़ी से देख कर कुछ अंदाजा नहीं लगता क्या?”

अब तक सभी फोन के पास आ कर खड़े हो गए थे और बात समझने की कोशिश कर रहे थे. मैं ने पूछा, “मिस नजमा, वह आदमी घर में है या कहीं बाहर गया है?”

“मुझे होश आया तो मैं ने गाड़ी स्टार्ट होने की आवाज सुनी. शायद वह कहीं बाहर गया है.”

मैं ने कहा, “मिस नजमा, फोन काट कर तुम टेलीफोन एक्सचैंज फोन करो. वे लोग पता लगा लेंगे कि तुम कहां से बोल रही हो. और इस के बाद एक्सचैंज का नंबर बता कर मैं ने फोन रख दिया. सभी जानने को बेचैन थे कि क्या हुआ. मैं ने उन्हें चुप रहने को कहा और एक्सचैंज फोन किया. सब की निगाहें फोन पर जमी थीं. एक्सचैंज वालों ने कहा, “जैसे ही नंबर ट्रेस होगा, पता बता देंगे.”

एकएक मिनट भारी पड़ रहा था. 15 मिनट बीत गए. घंटी नहीं बजी. मुझे ङ्क्षचता हो रही थी. इस के बाद एक्सचैंज से फोन आया कि उन्हें कहीं से कोई फोन नहीं किया गया. बात हो ही रही थी कि फोन आने का संकेत मिला. मैं ने फोन काट कर दोबारा फोन उठाया तो दूसरी ओर नजमा थी.

उस ने कहा कि वह एक्सचैंज फोन करने की कोशिश कर रही थी, पर कामयाब नहीं हुई, क्योंकि टेलीफोन करने के चक्कर में रिसीवर नीचे गिर गया. डायल में कोई खराबी आ गई है. वहां फोन नहीं लगा. बड़ी मुश्किल से न जाने कैसे आप को लग गया. वह रो रही थी और मिन्नतें कर रही थी कि उसे किसी तरह बचा लें, कहीं अगवा करने वाला आ न जाए.

हम कितने बेबस थे. एक मजबूर लडक़ी की फरियाद सुन रहे थे, पर उस के लिए कुछ कर नहीं पा रहे थे. वह बारबार कह रही थी, “अब फोन काटना मत, वरना दोबारा फोन नहीं मिल पाएगा.”

उसी बीच डीएसपी और एसपी साहब भी आ गए थे. याकूब अली का ड्राइंगरूम थाने का औफिस बन गया था. पूरी स्थिति जानने के बाद एसपी साहब ने कहा, “डीसी साहब का सख्त आदेश है कि किसी भी तरह जल्दी से जल्दी लडक़ी की तलाश की जाए.”

उसी समय नजमा के मांबाप भी दाखिल हुए. नजमा फोन पर थी. उस की आवाज सुन कर उस की मां जोरजोर से रोने लगी. तभी नजमा ने चीखते हुए कहा, “वह आ गया है, गाड़ी की आवाज आ रही है, वह किसी कमरे का दरवाजा खोल रहा है, उस के कदमों की आवाज साफ सुनाई दे रही है.”

मैं ने जल्दी से कहा, “मिस नजमा, हौसले से काम लो. मैं तुम से वादा करता हूं कि मैं तुम्हें जरूर बचाऊंगा.”

इसी के साथ मुझे दूर से गाडिय़ों और हौर्न की आवाजें आती सुनाई दीं. इस का मतलब वह घर किसी बड़ी सडक़ के किनारे था, जिस से बड़ी गाडिय़ां और ट्रक गुजरते थे. तभी उस की धीमी आवाज आई, “कोई दरवाजा खोल रहा है.”

मैं ने उस से कहा, “रिसीवर क्रेडिल के बजाय नीचे रख दो और खिडक़ी के टूटे शीशे के सामने खड़ी हो जाओ.”

उसी वक्त रिसीवर के नीचे गिरने की आवाज आई. शायद नजमा ने घबराहट में रिसीवर छोड़ दिया था. इस के बाद दरवाजा खुलने और किसी मर्द के कुछ कहने की आवाज आई. वह क्या कह रहा था, यह समझ में नहीं आ रहा था. इस के बाद दरवाजा बंद हुआ और बातें खत्म हो गईं. अब बस ट्रैफिक का शोर सुनाई दे रहा था.

एक तरकीब मेरे दिमाग में आई. मैं ने एसपी साहब से पूछा, “सर, आप की जीप में वायरलैस और रिसीवर है?”

उन्होंने कहा, “हां है.”

मैं ने भाग कर उन के ड्राइवर के पास जा कर कहा, “जल्दी से जीप का साइलैंसर निकाल दो.”

इस के बाद साहब से कहा, “मैं ने साइलैंसर निकलवा दिया है. मैं इस जीप से शहर की सडक़ों पर गुजरूंगा. आप अपना कान इस टेलीफोन से लगाए रखें. जब और जहां आप को हमारी जीप की आवाज सुनाई दे, आप वायरलैस से हमें खबर कर दें.”

बात डीएसपी साहब की समझ में आ गई. उन्होंने हैरत से मुझे देखा. एसपी साहब भी खुश और जोश में नजर आए. मैं कुछ बंदों के साथ फौरन जीप से रवाना हो गया. रात के साढ़े 10 बज रहे थे, पर सडक़ें जाग रही थीं. मैं ने वायरलैस चालू कर के एक सबइंसपेक्टर को पकड़ा कर बैठा दिया. मैं ने वे सडक़ें चुनी, जहां से भारी वाहन गुजरते थे. जीप तेजी से सडक़ों पर दौड़ रही थी. उस के शोर से लोग मुड़ कर देख रहे थे. आधा घंटे तक कुछ हासिल नहीं हुआ.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...