शाम को मैमूना उस के घर मिलने आई तो कंधे पर सिर रख कर सिसक पड़ी. रेशमा के पूछने पर बोली, ‘‘मेरे घर में जो तूफान मचा है, मैं बता नहीं सकती. सालार भाई तेरी आवाज के दीवाने हो गए हैं. वह तुझ से शादी करना चाहते हैं. अगर उन्होंने शमीम से सगाई तोड़ दी तो मेरी भी जिंदगी बरबाद हो जाएगी. अम्मा ने उन्हें बहुत समझाया, पर वह मान नहीं रहे हैं. अगर अब्बा को इस बात का पता चला तो घर में कयामत आ जाएगी. वह इस के लिए कभी नहीं मानेंगे.’’
सहेली की हालत पर उसे दया तो आई, लेकिन स्वार्थवश वह सहेली के बारे में सोच नहीं सकी. उस ने सपाट लहजे में कहा, ‘‘मैमूना इस में मेरा क्या दोष है? अगर तेरा भाई मुझे चाहता है तो तुम उसे समझाओ. इस में मैं क्या कर सकती हूं.’’
सहेली के इस रवैये से दुखी मैमूना रोती हुई लौट गई. रेशमा अब ख्वाबों में खोई रहने लगी कि उसे शहजादों जैसा सालार मोहब्बत करता है.
लेकिन दुर्भाग्य से रेशमा के सपने सपने ही रह गए. क्योंकि उस के अब्बू अल्लारखा ने उस का रिश्ता अपने एक पुराने दोस्त के भतीजे से तय कर दिया. लड़का जहाज पर नौकरी करता था. उम्र जरा ज्यादा थी, लेकिन बढि़या नौकरी थी.
रेशमा की मोहब्बत का फूल खिलता, उस के पहले ही उसे फरीद के नाम की अंगूठी पहना दी गई. मैमूना को इस सगाई का पता चला तो वह बहुत खुश हुई. लेकिन सालार को उदासी ने घेर लिया.
जल्दी ही फरीद और रेशमा का ब्याह हो गया. सुहागरात को फरीद ने उसे देखा तो काफी निराश हुआ, क्योंकि वह गोरीचिट्टी खूबसूरत दुल्हन चाहता था. उसी तरह की दुल्हन की तलाश में इतनी उम्र हो गई थी. फरीद जैसा ही हाल रेशमा का था. उस की आंखों में तो सालार की खूबसूरती बस चुकी थी. उस के आगे सांवला, ठिगना, छोटीछोटी आंखों वाला फरीद कुछ भी नहीं था. रेशमा जहां सालार के खयालों में खोई रहने लगी थी, वहीं फरीद भी उसे प्यार नहीं कर सका. बस दोनों अपना अपना फर्ज अदा करते रहे.