रोशन पर रेशमा की मेहरबानियां बढ़ती जा रही थीं. वह उस की प्लेट में ढेर सारा सालन डाल देती, पराठों में भी खूब घी लगाती. रोशन बच्चों के साथ ही घर से निकल जाता और नौकरी की तलाश में दिन भर दफ्तरों के चक्कर लगाता रहता, जो समय बचता, रहीम चाचा की दुकान पर बैठ कर उन का हिसाब किताब कर देता. बदले में वह उसे खर्च के लिए थोड़े बहुत पैसे दे देते थे.
जब तक रोशन घर से बाहर रहता, रेशमा पागलों की तरह दरवाजा ताकती रहती. आने पर ऐसी बेताबी से उस का स्वागत करती कि वह शर्मिंदा हो जाता. रात में उस की चारपाई पर जा कर बैठ जाती तो वह घबरा कर खड़ा हो जाता. रेशमा जुनूनी हो कर उस का हाथ पकड़ कर जबरदस्ती उसे चारपाई पर बिठाती. रोशन घबरा कर पसीने पसीने हो कर कहता, ‘‘चाची, मैं ऐसे ही ठीक हूं.’’
यह कहते रोशन की आवाज गले में फंसने लगती. एक रात रेशमा ने उस के करीब आ कर कहा, ‘‘तुम बहुत खूबसूरत हो रोशन, बिलकुल मेरे सा...’’
संयोग से इतने पर ही रेशमा की जुबान रुक गई. 2 शब्द और निकल जाते तो सारा राज खुल जाता. चाची के इस जबरदस्ती के प्यार से रोशन परेशान रहने लगा था. उसे लगने लगा कि अगर यही हाल रहा तो यहां रहना मुश्किल हो जाएगा. चाची की हरकतों से तंग आ कर वह गांव वापस जाने की सोचने लगा था. लेकिन चाचा ने आने तक उसे रुकने को कहा था. वह अपने अफसरों और दोस्तों से उस के लिए बात करना चाहते थे.