फरीद के आने में एक दिन रह गया तो रेशमा को अजीब सी घबराहट होने लगी. फिर वही बेरंग जिंदगी हो गई थी. यही सोचतेसोचते वह सो गई. अचानक किसी आहट से उस की नींद खुली तो उसे एक परछाई दिखाई दी. उस ने घबरा कर पूछा, ‘‘कौन...?’’
आने वाले ने चेहरे पर बंधा कपड़ा खोला तो वह एकदम से खिल उठी, ‘‘अरे रोशन तुम, मेरा दिल कह रहा था कि तुम जरूर लौट कर आओगे. आखिर तुम्हारा दिल मेरे बिना नहीं लगा न?’’
रोशन ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘चाची, तुम्हें औरत कहना औरत की तौहीन है. तुम रिश्ते के नाम पर कलंक हो. मैं तुम्हें मां की तरह मानता था, जबकि तुम मेरी बेबसी और मजबूरी का फायदा उठा रही थीं. उम्र और रिश्ते का लिहाज किए बगैर तुम मुझ से इश्क लड़ा रही थी. मैं यहां नौकरी का सपना ले कर आया था, लेकिन तुम ने मुझे बरबाद कर दिया.’’
रेशमा दम साधे उस की बातें सुनती रही. रोशन निडर मर्द की तरह तना खड़ा था. रेशमा गिड़गिड़ाई, ‘‘मैं तुम से प्यार करती हूं रोशन.’’
‘‘लानत है तुम्हारे प्यार पर.’’ कह कर उस ने चादर में छिपा चाकू निकाला और फुर्ती से रेशमा पर हमला कर दिया. चाकू बाईं बाजू के पास सीने में घुस गया. चाकू को उसी तरह छोड़ कर वह हवा के झोंके की तरह दीवार फांद कर भाग गया. रेशमा बेहोश हो गई. उस के शरीर से तेजी से खून बहता रहा.
फरीद के स्वागत में बच्चों ने घर को सजाने का प्रोग्राम बनाया था, इसलिए बच्चों ने स्कूल से छुट्टी ले रखी थी. सुबह जब वे मां को बुलाने छत पर गए तो मां खून में डूबी पड़ी थी. दोनों जोर जोर से रोने चिल्लाने लगे. शोर सुन कर पड़ोसी आ गए. आननफानन में एंबुलैंस से रेशमा को अस्पताल पहुंचाया गया. फरीद घर पहुंचा तो उसे इस दर्दनाक हादसे के बारे में पता चला.