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उस दिन तो इंसपेक्टर खान चले गए, लेकिन अगले दिन जब रोशन घर में अकेला था तो आ कर सख्ती से पूछताछ करने लगे. उन्होंने पूछा, ‘‘चाची के साथ तुम्हारा रवैया कैसा था?’’

‘‘मैं उन का बहुत आदर करता था. जो भी काम कहती थीं, मैं कर देता था.’’

‘‘तुम किसी सालार को जानते हो या इस तरह का नाम कभी सुना है?’’

‘‘नहीं साहब, मैं किसी सालार को नहीं जानता.’’

‘‘रेशमा का कत्ल किस ने किया, यह तो तुम्हें पता ही होगा? तुम्हारा ही कोई दोस्त होगा?’’

रोशन घबरा कर बोला, ‘‘नहीं साहब, मेरा यहां कोई दोस्त नहीं था.’’

इंसपेक्टद सफदर खान के दिमाग में नईम की कही बात बारबार घूम रही थी कि अम्मी रोशन भाई को बहुत चाहती थीं, हम से ज्यादा उन का खयाल रखती थीं. आखिर रेशमा रोशन पर इतना मेहरबान क्यों थी? अपने बेटे से भी ज्यादा उस से प्यार करती थी.

उन्होंने इसी बात को ध्यान में रख कर पूछा, ‘‘रेशमा, तुम्हारी सगी चाची नहीं थी, फिर वह तुम्हारा इतना खयाल क्यों रखती थी? तुम छोटे बच्चे तो हो नहीं, जवान हो. फिर तुम पर इतना प्यार लुटाने का मतलब क्या था? कहीं तुम अपनी चाची पर अपनी जवानी और खूबसूरती की बदौलत डोरे तो नहीं डाल रहे थे? पैसों के लिए उसे बरगला तो नहीं रहे थे?’’

‘‘नहीं साहब, खुदा के लिए ऐसा न कहें. वह मेरी मां जैसी थीं.’’

‘‘फिर उन के इतना प्यार करने की वजह क्या थी?’’

रोशन के सब्र का बांध एकदम से टूट गया. वह फफक कर रो पड़ा. संयोग से उसी समय फरीद घर में दाखिल हुआ. रोशन की रोने की आवाज सुन कर वह दरवाजे के पीछे खड़ा हो गया.

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