पहर को मीता स्कूल से इंटरव्यू दे कर घर लौटी तो उस का सिर दर्द और गरमी से घूम रहा था. वह मटके से पानी ले कर पी रही थी, तभी उस की मां आ गईं. वह उसे आशा भरी नजरों से देख रही थीं. हताश मीता ने चेहरा झुका लिया. इस से मां समझ गईं कि आज भी नौकरी पाने के महायुद्ध में बेटी परास्त हो कर आई है. मीता की हिम्मत बढ़ाने के लिए उन्होंने उस के सिर पर हाथ फेरा और रसोई में चली गईं.
मीता के साथ पिछले 6 महीने से यही हो रहा था. जहां भी उसे जगह खाली होने की जानकारी मिलती, वह तुरंत आवेदन कर देती. अच्छे नंबरों से बीएड करने के बाद नौकरी के लिए भटकना पड़ रहा था. कभीकभी उसे अपने देश के शिक्षातंत्र पर बहुत गुस्सा आता, क्योंकि जो भी जगहें निकलती थीं, उन में से आधी तो आरक्षित वर्ग को मिल जाती थीं, बाकी में सामान्य श्रेणी के सिफारिश वाले हो जाते थे. मध्यवर्गीय बेचारे मुंह ताकते रह जाते हो.
पिछली बार जब वह एक ही स्कूल में दूसरी बार इंटरव्यू दे कर लौट रही थी तो एक आदमी पीछे से आ कर उसे स्कूल के गेट पर मिला. वह रिक्शे पर बैठने जा रही थी, तभी उस ने आवाज दे कर उसे रोका. मीता ने उसे स्कूल के औफिस में बैठे देखा था. वह मीता के नजदीक आ कर धीमे से बोला, ‘‘20 लाख हो तो ले आइए. पैनल में आप का नाम दूसरे या तीसरे नंबर पर करवा दूंगा. डील बिलकुल पक्की और गोपनीय होगी.’’ कह कर वह आदमी लौट गया था.