एक दिन मीता बच्चों को पढ़ा रही थी, तभी अचानक विधायक हीराचंद औचक निरीक्षण के लिए आ गया. बच्चे उसे पहचानते थे, इसलिए उन्होंने खड़े हो कर अभिवादन किया. मीता ने भी उस का अभिवादन किया. विधायक खूबसूरत मीता को देख कर हैरान रह गया. टकटकी लगाए वह उसे निहारता.
संकोच से मीता ने नजरें झुका लीं. लेकिन उसे विधायक की आंखों में अपने भविष्य की भयावह झलक नजर आ गई थी. उस समय विधायक कुछ कहे बगैर चला गया.
शाम को मीता बच्चों की कौपियां जांच रही थी कि विधायक के दरबान ने कहा कि उसे बंगले में बुलाया गया है. मीता चप्पल पहन दरबान के पीछे चल पड़ी. मन में चिंताओं के बादल उमड़ घुमड़ रहे थे. भव्य बंगले के हौल में विधायक पत्नी सहित बैठा था.
मीता नमस्कार कर के बैठ गई. विधायक की पत्नी गोरीचिट्टी थोड़ी स्थूल काया की सीधीसादी सी महिला थी. विधायक ने अपनी पत्नी सरला का परिचय कराते हुए कहा, ‘‘यह प्रभुभक्ति में लीन रहती हैं, जबकि मैं देशभक्ति में.’’ इतना कह कर उस ने जोर से ठहाका लगाया. आत्मप्रशंसा कर के जब वह थक गया तो उस ने दरबान को चाय भिजवाने का आदेश दिया. मीता खड़ी हो कर बोली, ‘‘नहीं, फिर कभी.’’
पर सरला ने उस का हाथ पकड़ कर बैठाते हुए कहा, ‘‘हमारे यहां गुरु महाराज का समागम होता रहता है. उस में तुम्हें भी आना होगा.’’
चाय पी कर मीता जाने लगी तो दीवार से सटे 2 दरबान खड़े आपस में बातें कर रहे थे. उन्होंने मीता को देखा नहीं. मीता ने उन की बातें सुन लीं. उन में से एक कह रहा था, ‘‘इस बार तो जाल में बड़ी ही सुंदर चिडि़या फंसी है.’’