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हम डा. प्रकाश के घर से निकल आए. मौसम काफी ठंडा था. रात के 8 बजे थे. उसी वक्त पास में एक लाल रंग की कार मोड़ काट कर आगे बढ़ गई. उस की ड्राइविंग सीट पर श्याम बैठा था. कुछ सोच कर मैं ने इमरान खां से फासला रख कर उस का पीछा करने को कहा. लाल रंग की वह कार मूनलाइट क्लब के सामने जा कर रुकी.

इस क्लब के ज्यादा मेंबर अंगरेज फौजी या अमीरों के लड़के थे. क्लब में काफी रश रहता था. इमरान खां ने मुझे बताया कि अनिल के कागजात में इस क्लब की मेंबरशिप का कार्ड भी था. हम दोनों अंदर क्लब में पहुंचे. अंदर काफी शोरशराबा था. लोग वहां की डांसरों के साथ डांस कर रहे थे. अंदर तंबाकू का धुआं और शराब की बू भरी थी.

मेरी नजर श्याम पर पड़ी. वह एक अंगरेज लड़की से हंसहंस कर बातें कर रहा था. उस के चेहरे पर गम की हलकी सी भी निशानी नहीं थी. वह उस श्याम से एकदम अलग लग रहा था, जिसे हम ने थोड़ी देर पहले देखा था. क्लब का मैनेजर इमरान का दोस्त था. उसे देख कर वह हमारे पास आया और हमें अपने कमरे में ले गया. दरवाजे के शीशे से श्याम साफ दिख रहा था.

मैं ने मैनेजर से उस के बारे में पूछा तो उस ने बताया, ‘‘इस का नाम श्याम है, अमीर घर का लड़का है.’’

‘‘इस के बारे में और कुछ बताइए. कोई वाकया, कोई झगड़ा या और कुछ.’’

वह कुछ सोचते हुए बोला, ‘‘हां, कुछ दिनों पहले एक वाकया हुआ था. क्लब की लौबी में श्याम का एक लड़की से झगड़ा हुआ था. झगड़ा क्या तकरार हो रही थी. वह लड़की बिफरी हुई बाहर जा रही थी. जबकि श्याम मिन्नतें कर के उसे रोक रहा था. इस पर लड़की ने चीख कर गुस्से में कहा था, ‘तुम बहुत नीच इनसान हो, मैं तुम्हारी सूरत भी नहीं देखना चाहती.’ इस के बाद दोनों एकदूसरे से उलझते बाहर चले गए थे.’’

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