निक वेल्वेर एक अलग तरह का चोर था. वह एक दिन सुबह साढ़े 10 बजे पब्लिक लाइब्रेरी में बैठा हुआ पिछले 2 घंटे से मैगजीन पढ़ रहा था. इसी दौरान उस के दिमाग में एक आइडिया आया कि क्यों न वह चोरी के टौपिक पर एक किताब लिखे, जिस का शीर्षक हो ‘चोरी एक आर्ट’.
इस विषय पर क्याक्या लिखा जाए, इस बारे में वह सोच ही रहा था, तभी एक मोटा सा आदमी आ कर उस के पास वाली कुरसी पर बैठ गया. उस के बैठते ही निक उठने लगा. तभी वह मोटा आदमी बोला, ‘‘हैलो मिस्टर निक, शायद तुम मुझे नहीं जानते होगे लेकिन मैं तुम्हें जानता हूं. किसी के रेफरेंस से ही तुम्हारे पास तक पहुंचा हूं. मेरा नाम विक्टर एलियानोफ है.’’
निक विक्टर को गौर से देखने लगा तभी विक्टर ने कहा, ‘‘मैं तुम से मिलने यहां इसलिए आया हूं कि मैं तुम से एक ट्रंक चोरी करवाना चाहता हूं.’’
इतना सुनते ही वेल्वेर ने कहा, ‘‘जब आप को किसी ने मेरे पास भेजा है तो यह भी बताया होगा कि मैं सिर्फ फालतू और मामूली चीजों की ही चोरी करता हूं. ऐसी चीजों के चुराने में किसी को दुख भी नहीं होता.’’
‘‘हां, मैं जानता हूं. जिस संदूक के बारे में मैं बात कर रहा हूं वह पुराना और जंग लगा है. वह कोई 70-80 साल पुराना है.’’
‘‘जब इतना पुराना है, तब तो यह ऐतिहासिक महत्त्व की चीज होगी?’’
‘‘नहीं ऐसा कुछ नहीं है. यह एक फालतू पुराना ट्रंक है. उसे कोई कबाड़ी भी लेना पसंद नहीं करेगा, डेढ़ फीट ऊंचा 2 फीट चौड़ा और 4 फीट लंबा है.’’