अगले दिन मैं औफिस जाने के बजाय कोर्ट की ओर चल पड़ा. औफिस तो वैसे भी नहीं जा सकता था. मैं रिक्शे के इंतजार में खड़ा था कि अचानक 2 आदमी आ कर मेरे दाएंबाएं खड़े हो गए. एक ने तीखे लहजे में कहा, ‘‘मिस्टर सामने जो गाड़ी खड़ी है, चुपचाप चल कर उस में बैठ जाओ.’’
‘‘क्यों?’’ मैं ने पूछा.
‘‘सवाल करने की जरूरत नहीं है. जो कह रहा हूं, वही करो, वरना गोली मार दूंगा. चलो मेरे साथ, 2-4 बातें कर के छोड़ देंगे.’’ उस ने कहा.
मैं समझ गया कि कहानी क्या है? वे अजहर के भेजे गुंडे थे. वह एक दौलतमंद आदमी था. उस के पास पैसा भी था और ताकत भी. मैं बेचारा गरीब अकेला उस का कैसे सामना कर सकता था. लेकिन मुझे यह उम्मीद नहीं थी. वे लोग किराए के कातिल थे, मुझे मारने के लिए कहीं ले जा रहे थे. इन्हें न मुझ में कोई दिलचस्पी थी, न अजहर में. इन्हें इन के पैसे चाहिए थे.
रास्ते में मै ने उन से बात करनी चाही तो उन्होंने मेरी बातों का कोई जवाब नहीं दिया. गाड़ी काफी तेज चल रही थी. मैं काफी डरा हुआ था. इस के बावजूद दिमाग में एक बात थी कि कुछ न कुछ कर गुजरना है. एक सुनसान जगह पर गाड़ी रोक कर उन्होंने मुझ से उतरने को कहा. वे कुल 3 आदमी थे. एक गाड़ी चला रहा था. 2 मेरे अगलबगल बैठे थे. दोनों के पास हथियार थे. मैं गाड़ी से उतरा. मैं पूरी तरह सजग था. मुझे कुछ तो करना ही था.