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महाराष्ट्र की सामाजिक प्रथा के अनुसार लड़के वाले वर ढूंढने नहीं जाते, बल्कि वरपक्ष लड़की की तलाश करता है. ऐसे में जब वनिता के लिए ज्ञानेश्वर चव्हाण का रिश्ता आया तो वनिता के परिवार वालों ने उसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था.

24 वर्षीय ज्ञानेश्वर चव्हाण सेना में था. उस की पोस्टिंग दिल्ली में थी. वह भी वनिता के गृह जनपद बीड़ का रहने वाला था. उस का परिवार संपन्न और संभ्रांत था. किसी चीज की कोई कमी नहीं थी. ज्ञानेश्वर के पिता गांव के बड़े किसान थे.

सब कुछ तय होने के बाद वनिता के परिवार वालों ने अपने पुश्तैनी गांव पहुंच कर वनिता और ज्ञानेश्वर की सगाई कर जल्द ही शादी भी कर दी.

शादी के बाद जब ज्ञानेश्वर अपनी ड्यूटी पर लौटा तो वह कुछ दिनों के लिए पत्नी वनिता को भी अपने साथ ले गया. शुरुआती दौर का उन का दांपत्य जीवन काफी सुखमय रहा. जिस तरह ज्ञानेश्वर वनिता जैसी सुंदर पत्नी पा कर खुश था, उसी तरह वनिता भी ज्ञानेश्वर से शादी कर के खुद को भाग्यशाली समझ रही थी.

ज्ञानेश्वर सुबह अपनी ड्यूटी पर चला जाता था और वनिता अपने घर के कामों में व्यस्त हो जाती थी. देखतेदेखते 2-3 साल कैसे निकल गए, पता ही नहीं चला. इस बीच वनिता एक बेटी और एक बेटे की मां बन गई.

समय अपनी गति से चल रहा था. दोनों बच्चे धीरेधीरे बड़े हो रहे थे. इस के पहले कि वे अपने बच्चों का दाखिला स्कूल में करवा पाते, अचानक ज्ञानेश्वर का ट्रांसफर हो गया. ज्ञानेश्वर के ट्रांसफर की वजह से वनिता को दिल्ली से मुंबई आना पड़ा.

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